वेद
वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रंथ हैं, जिनमें ज्योतिष, संगीत, गणित, विज्ञान, धर्म, औषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान का भण्डार भरा पड़ा है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में मेहनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्नरूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्ययन करके ही इनमें संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है। सामान्य भाषा में वेद का अर्थ है-‘ज्ञान’। वेद ज्ञान के वे भण्डार हैं जिनके उचित अध्ययन के लिए मनुष्य यदि उनमें प्रवेश करे तो वह बनकर निकलेगा और स्वयं का तो उद्धार करेगा ही साथ में औरों का भी उद्धार करेगा।



आर्य
आर्य शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ, अतः आर्य समाज का अर्थ हुआ श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाज, जो वेदों के अनुकूल चलने का प्रयास करते हैं। दूसरों को उस पर चलने को प्रेरित करते हैं।
आर्य किसी जाति या धर्म का नाम न होकर इसका अर्थ सिर्फ श्रेष्ठ ही
माना जाता है। अर्थात जो मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ है वही आर्य है। आर्य का मतलब श्रेष्ठ, संस्कारी, सुधारक, असत्य का विरोधी, अत्याचार व् अनाचार का विरोधी, निराकार इश्वर की उपासना एवम सत्य के पुजारी यह सब गुण जिनमे हो उसे आर्य कहते हे | जो मनुष्य वेद विदया ग्रहण कर श्रेष्ठ गुण, कर्म और स्वभाव को धारण करता है, जो परोपकारी, धर्मात्मा और सत्य मार्ग पर चलने वाला प्रत्येक प्राणी के हित के लिए अपने कर्तव्य का पालन करता है, और परमात्मा की उपासना वेदानुसार विधि से करता है। उसे आर्य कहते हैं। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था।



आर्य समाज

आर्य समाज कोई नया मत या संप्रदाय नहीं है! ,आर्य समाज संपूर्ण रूप से वैदिक ज्ञान पर आधारित है और वेदानुकूल वैदिक साहित्य और सत्य सनातन वैदिक धर्म को ही सर्वोपरि मानता है | आर्य समाज सोये भारत को ही नहीं सोये विश्व को जगाने वाली महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा आरंभ की गई एक क्रांति है |आर्य समाज भारत की ऋषि परंपरा का संवाहक है | हमारे पूर्वज समस्त ऋषि मुनि, योगी, तपस्वी ,विदुषी, मनीषी,महापुरुष राम ,कृष्ण ,आदि ये सभी भी आर्य थे और यहाँ तक की हमारे सम्पूर्ण इस देश का नाम भी आर्यावर्त था |


Courtsey- Arya samaj fans


आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती भारतवर्ष के क्रांतिकारी उन्नायक, देश उद्धारक, वेद भगवान सर्वोच्च सत्ता पर स्थापित करने वाले महर्षि थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्य अतीव महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। नारी शिक्षा का भारत में समारंभ वास्तव में महर्षि दयानंद की देन है। आर्य समाज का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अतीव महत्वपूर्ण रहा है। सामाजिक चेतना को नए आयाम देने वालों में स्वामी दयानंद अग्रणी माने जाते हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जन्म भारत के गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित टंकारा ग्राम के निकट मौर्वी (मौर्बी) नामक स्थान पर हुआ था।
A.- Three - The efficient , the material and the common. The efficient cause is the one by whose directed activity a thing is made, and by the absence of whose directed activity nothing is made. It does not change itself, though it works changes in other things. The material cause is one without which nothing can be made. It undergoes changes, is made and un-made.
The common cause is one that is an instrument in the making of a thing, and is common to many things. The efficient cause is of two kinds:-
The Primary efficient cause is the Supreme Spirit - the Governor


Source - Light of truth
समर्पण
क्या समर्पण करू ? कुछ हो मेरे पास तब तो !
मेरे पास तो कुछ भी नहीं | मेरा शरीर भी तो मेरा नहीं यह भी तो तेरा ही मंदिर है |
फिर क्या अर्पण करू मेरे प्रियतम ! क्या यह विचारमाला? क्या यह मेरी है ? प्रभु ,तू तो जानता है की यह तेरी ही कृपा का प्रसाद है ,फिर यह  तेरा ही प्रसाद तुझे समर्पण करने में मेरा क्या लगता है -
मेरा मुझ में कुछ नहीं
जो कुछ है सब तोर|
तेरा तुझ को सौपते
क्या लागत है मोर ||
स्वीकार कीजये इस अपने आपको....

SAWMI DAYANAND SARASWATI ( Founder of Arya Samaj who wrote magnum opus Sathyartha Prakash)
(Drawn in water colors by Dr K Prabhakar Rao)

यह ओ3म्‌  शब्द परमेश्वर का सर्वोतम नाम है, क्योंकि इसमे जो अ, उ , म  है इन तीन से मिलकर एक ओउम समुदाय बना है है, इस एक नाम में परमेश्वर/ईश्वर के बहुत नाम आते है जैसे अकार  से विराट, अग्नि , और विश्वादी. 

ओ-->     ओ बोलने पर मुंह खुलता है
3--->      बोलने पर खुला रहता है
म्‌ -->     बोलने पर  बंद हो जाता है

अतः ओ3म् बोलने पर मुंह खुलता है और बंद हो जाता है|






सुमित आर्य  
http://aryasamajjhansi.blogspot.com/



महर्षि दयानंद का वैराग्य

पिछले देढसौ सालों में सनातन हिन्दु धर्म व जाति में और उसके द्वारा समस्त संसार में प्रेरणा व प्रकाश प्रदान करनेवाले और नवजीवन की लहर पैदा करनेवाले दो प्रतापी महापुरुष हो गये । दोनों ज्योतिर्धर थे । दोनों ने जनकल्याण का कार्य किया । दोनों परम मेधावी, त्यागी, बैरागी और राष्ट्रप्रेमी थे । एक का नाम था वेदांत केसरी, रामकृष्ण मिशन के प्रणेता स्वामी विवेकानंद और दूसरे थे आर्यसमाज के संस्थापक, आर्षदृष्टा, महर्षि दयानंद ।

महर्षि दयानंद जब महर्षि के रूप में ख्यात नहीं हुए थे और अज्ञात परिव्राजक के रूप में भारत की यात्रा कर रहे थे तब घुमते-घुमते हिमालय के सुप्रसिद्ध स्थल उखीमठ में आ पहुँचे।
कुछ समय उन्होंने वहाँ शांति से गुजारा था । उस वक्त उनकी उम्र छोटी थी पर योग्यता बडी थी । उनमें वैराग्य व सत्य की लहरें तरंगित हो रही थी ।

उखीमठ के महंत पर इनका सिक्का जम गया । उन्होंने दयानंदजी को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय कर लिया । एक बार उनके समक्ष इसका प्रस्ताव भी पेश किया और हमेशा के लिए उखीमठ में ही रहकर वहाँ की गद्दी स्वीकारने के लिए आग्रह किया ।
दयानंद के जीवन का यह एक बडा प्रलोभन था । उखीमठ जैसे सुंदर व समृद्ध स्थल के महंत होने की महत्ता और दूसरी भोग-वैभव-युक्त सुखी जीवन की संभावना । परंतु त्याग, संयम और वैराग्य की प्रबल भावनावाले, भावी महर्षि होने के लिए ही अवतीर्ण, दयानंदजी को वह पद तनिक भी चलायमान न कर सका । वे अडिग रहे और बोले, ‘यह छोटा-सा मठ अपनी समस्त संपत्ति तथा समृद्धि के साथ मुझे मेरे ध्येय से च्युत नहीं कर सकता । यह पद, प्रतिष्ठा और संपत्ति मेरे मन को मोहित नहीं कर सकती । मैं सुख, संपत्ति और सत्ता में बंधने के लिए नहीं अपितु बंधे हुओं को छुड़ाने के लिए आया हूँ ।’
और यह कह वे उस मठ के बाहर निकल पडे । महंत उन्हें देखते रह गये ।
ऐसा उत्कृष्ट और उत्कट था महर्षि दयानंद का वैराग्य । इसी वैराग्य, त्याग और सत्य से प्रेरित होकर उन्होंने भविष्य में जो महान कार्य किया यह सर्वविदित है । इसी कारण वे अमर हो गये ।
ध्येय की सतत स्मृति और निष्ठा मनुष्य को सदा जाग्रत बनाये रखती है और प्रलोभनों से गुजरकर आगे बढने की क्षमता प्रदान करती है । दयानंद ने अपने जीवन के द्वारा यह करके दिखाया ।
- श्री योगेश्वरजी
 
जितने मनुष्य से भिन्न जातिस्थ प्राणी है उनमे दो प्रकार का स्वाभाव है  बलवान से डरना, निर्बलो को डराना और पीड़ा देना, अर्थात दुसरे का प्राण तक निकालके अपना मतलब साध लेना, ऐसा देखने में आता है | जो मनुष्य ऐसा स्वाभाव रखता है उसको भी इन जातियों में गिनना उचित है, परन्तु जो निर्बलो पर दया, उनका उपकार आर निर्बलो को पीड़ा देनेवाले अधर्मी बलवानो से किंचितमात्र भी भय शंका न करे इनको परपीड़ा से हटाके निर्बलो की रक्षा तन,मन,धन से सदा करना ही मनुष्य जाती का निजगुन है, क्यों की जो बुरे कामो के करने में भय और सत्य कामो के करने में किंचित भी भय-शंका नहीं करते वे ही मनुष्य धन्यवाद् के
पात्र कहाते है | 
----- स्वामी दयानंद सरस्वती ----





Sumit Sharma
Ravi Namdeo
Bharat Singh
Sarvesh Sharma
Gaurav Singh
Swati Sharma
Rachna Namdeo
Priya Singh
Swati Singh





  • ॐ स नो बंधुर्जनिता स विधाताधामानि वेद भुवनानि विश्वा।  वह परमात्मा अपने लोगो का भ्राता के समान सुखदायक और सब कामो को पूर्ण करनेहारा है।
                                                                                                
  • ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातःपतिरेक आसीत्‌। जो स्वप्रकाशस्वरुप और जिसने प्रकाश करने हारे सूर्यचंद्रमादि पदार्थ उत्पन्न करके धारण किये है, जो सब जगत का प्रसिद्द स्वामी और सब जगत के उत्पन्न होने से पूर्व वर्तमान था॥
                                                                                               

  • अनुव्रतः पितुपुत्रः मात्राभवतुसम्मनाः । जाया पत्ये मधुमतिम्‌ वाचं वदतु शन्तिवाम्‌॥ जिस घर मे पुत्र पिता के व्रतो का पालन करने वाला हो, माता का सम्मान करने वाला हो। पत्नि  मधुर वचन बोलने वाली हो। वही घर स्वर्ग है॥
                                                                                            

  •   कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजिविषेच्छतम्‌ समा। कर्म करते हुए सौ वर्ष और उससे भी अधिक जीने की इच्छा करे॥
                                                                                           
  • भद्रं कर्णेभि: श्रणुयाम्‌ देवा: भद्रं पश्येमाक्ष भिर्यजत्रा:॥ कानो से अच्छा सुने और आँखो से अच्छा देखे॥

  • मन एव मनुष्यानां कारणं बंध मोक्षयो। मन ही मनुष्योँ के बंधन और मोक्ष का कारण है। जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन । शाकाहारी बने मन को पवित्र बनावे॥
                                                                                                  - Atul Arya

                                                                                        





"I accept as Dharma whatever is in full conformity with impartial justice, truthfulness and the like; that which is not opposed to the teachings of God as embodied in the Vedas. Whatever is not free from partiality and is unjust, partaking of untruth and the like, and opposed to the teachings of God as embodied in the Vedas—that I hold as adharma"

He also said:

"He, who after careful thinking, is ever ready to accept truth and reject falsehood; who counts the happiness of others as he does that of his own self, him I call just."
                                                                               — Satyarth Prakash









1.यदि कोई व्यक्ति किसी गुफा में बैठकर विचारो का सृजन करे और वही मृत्यु को प्राप्त हो जाये 
तो निश्चित ही वे विचार उस गुफा को तोड़कर  बहार आजायेंगे  और सम्पूर्ण विश्व  को प्रभावित करेंगे |
सत्य है मनुष्य जन्म लेता है और एक दिन संसार से विदा भी लेता है | कुछ पीछे  रह जाते है ,तो विचार |
कोई व्यक्ति महान नहीं होता ,महान होते है तो बस विचार|
जीवन की वास्तविकता और सार्थकता भी इन विचारो में ही है ,इसलिए हर क्षण ,हर पल विचार जन्म लेते रहे ,यही सृजन है ...
परम शक्ति है ,विकास है, विस्तार है ..

-स्वामी विवेकानंद


2.विवेकपूर्वक कर्म ही मानव की विशेषता है | अविवेकपूर्वक किये कर्म की सफलता काकतालीय न्यायवाली ( काक के बैठने से ताड़ का गिर जाने जैसी ) आकस्मिक घटना है | न तो अविवेकपूर्वक कर्म करने में और ना ही कराने में कल्याण है | किन्तु शिक्षा और विवेकपूर्वक कर्म करने में ही मानव का कल्याण है | अविवेकपूर्वक कर्म करने से काम अधुरा रह जाता है और अनिष्ट हो जाता है |















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आर्य समाज विवाह

आर्य समाज में जो विवाह होते हैं वे सभी हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत होते हैं। आर्य समाज आम तौर पर विवाहों की पंजिका रखते हैं और प्रमाणपत्र जारी करते हैं। विवाह के पूर्व यह भी जानकारी कर लेते हैं कि दोनों पक्ष विवाह के योग्य हैं या नहीं और विवाह दोनों की पूर्ण सहमति से हो रहा है अथवा नहीं। इस कारण से आर्यसमाज में संपन्न विवाह पूरी तरह से वैध है।
आर्यसमाज वे ही विवाह कराते हैं जो कि कानूनन वैध हों। वे दोनों की आयु के प्रमाण देखते हैं, आर्यसमाज देखते हैं कि विवाह सूत्र में बंधने जा रहे स्त्री-पुरुष दोनों में कोई ऐसा संबंध तो नहीं है जिस से विवाह अवैध हो जाए, यह भी देखते हैं कि उन में से कोई विवाह के अयोग्य नहीं है। इस तरह से एक हिन्दू विवाह के लिए आवश्यक सभी बातों को देखते हुए एक वैध विवाह संपन्न कराते हैं। विवाह के साक्षी भी होते हैं।आर्यसमाज अपने रजिस्टर में इन सब तथ्यों को अंकित करते हुए विवाह के बाद विवाह का प्रमाण पत्र जारी करते हैं। इस तरह यदि हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत सभी शर्तों को पूरा कराते हुए आर्य समाज मंदिर - विवाह संपन्न हुआ है तो उसे वैध ठहराने के लिए किसी अन्य प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है।

Contact Persons-

SUMIT SHARMA
Email- Web.aryasamaj@gmail.com

RAJENDRA SINGH YADAV
प्रधान , आर्य समाज नगरा ,झाँसी






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