ॐ स नो बंधुर्जनिता स विधाताधामानि वेद भुवनानि विश्वा। वह परमात्मा अपने लोगो का भ्राता के समान सुखदायक और सब कामो को पूर्ण करनेहारा है।
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातःपतिरेक आसीत्। जो स्वप्रकाशस्वरुप और जिसने प्रकाश करने हारे सूर्यचंद्रमादि पदार्थ उत्पन्न करके धारण किये है, जो सब जगत का प्रसिद्द स्वामी और सब जगत के उत्पन्न होने से पूर्व वर्तमान था॥
अनुव्रतः पितुपुत्रः मात्राभवतुसम्मनाः । जाया पत्ये मधुमतिम् वाचं वदतु शन्तिवाम्॥ जिस घर मे पुत्र पिता के व्रतो का पालन करने वाला हो, माता का सम्मान करने वाला हो। पत्नि मधुर वचन बोलने वाली हो। वही घर स्वर्ग है॥
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजिविषेच्छतम् समा। कर्म करते हुए सौ वर्ष और उससे भी अधिक जीने की इच्छा करे॥
भद्रं कर्णेभि: श्रणुयाम् देवा: भद्रं पश्येमाक्ष भिर्यजत्रा:॥ कानो से अच्छा सुने और आँखो से अच्छा देखे॥
मन एव मनुष्यानां कारणं बंध मोक्षयो। मन ही मनुष्योँ के बंधन और मोक्ष का कारण है। जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन । शाकाहारी बने मन को पवित्र बनावे॥
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