समर्पण | Samarpan

समर्पण
क्या समर्पण करू ? कुछ हो मेरे पास तब तो !
मेरे पास तो कुछ भी नहीं | मेरा शरीर भी तो मेरा नहीं यह भी तो तेरा ही मंदिर है |
फिर क्या अर्पण करू मेरे प्रियतम ! क्या यह विचारमाला? क्या यह मेरी है ? प्रभु ,तू तो जानता है की यह तेरी ही कृपा का प्रसाद है ,फिर यह  तेरा ही प्रसाद तुझे समर्पण करने में मेरा क्या लगता है -
मेरा मुझ में कुछ नहीं
जो कुछ है सब तोर|
तेरा तुझ को सौपते
क्या लागत है मोर ||
स्वीकार कीजये इस अपने आपको....

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