वैदिक मन्त्र | आर्य समाज नगरा ,झाँसी

गायत्री मन्त्र

ओ3म्  भुर्व भुवः स्वः तत सवितुर्व वरेण्यम भर्गो देवस्य धी मही धियो यो नः प्रचो दयात
अर्थ: हे प्राण स्वरूप दुःखहर्ता, सर्व व्यापक आनंद के देने वाले प्रभो! आओ सर्वज्ञ और सकल जगत के उत्पादक हैं. हम आपके उस पूजनीय पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है. हे पिता! आप से हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो. आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी हमारी प्रार्थना है.


ओ3म्  द्यौ: शांतिरन्तरिक्षँ शांति: पृथ्वी शांतिराप:
शांतिरोषधय: शांति:। वनस्पतय: शांतिर्विश्वे देवा:
शांतिर्ब्रह्म शांति: सर्वँ शांति: शांतिरेव शांति: सा मा
शांतिरेधि। ओ3म् शांति: शांति: शांति: ।।



सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दु:खभाग्भवेत् ।।





ओउम्  विश्वानी देव सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद भद्रं तन्न आ सुव
मंत्रार्थ – हे सब सुखों के दाता ज्ञान के प्रकाशक सकल जगत के उत्पत्तिकर्ता एवं समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! आप हमारे सम्पूर्ण दुर्गुणों, दुर्व्यसनों और दुखों को दूर कर दीजिए, और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव, सुख और पदार्थ हैं, उसको हमें भलीभांति प्राप्त कराइये।

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