श्रीराम (रामचन्द्र),---मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान---, श्रीराम प्राचीन भारत में जन्मे, एक महापुरुष थे। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| उन पर तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा था | खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय माने जाते हैं । रामचन्द्र हिन्दुत्ववादियों के भी आदर्श पुरुष हैं ।
राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बडे पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था|और इनके तीन भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बडे भक्त माने जाते है। राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया|
हिन्दू धर्म के कई त्यौहार, जैसे दशहरा और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुडे हुए है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतीय संस्कृति के और आर्य समाज के आदर्श है । वाल्मीकि रामायण में श्रीराम का उज्ज्वल चरित्र वर्णित है।
राम और रामायण के अन्य पात्रों से शिक्षा ग्रहण करना बड़े सौभाग्य की बात है।
भगवान श्रीराम "रघुकुल' के एक महाराजा थे। आदिकालीन मनु के सात पुत्र थे जिनकी एक शाखा में भागीरथ, अंशुमान, दिलीप और रघु आदि हुए और दूसरी शाखा में सत्यवादी हरिश्चन्द्र आदि। वैवस्वत मनु के इसी वंश का नाम आगे चलकर सूर्यवंश हुआ, जिसमें श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया। श्रीराम एक आदर्श पुत्र, पति, सखा, भ्राता थे। वे वीर, धीर और सर्वमर्यादाओं से विभूषित थे। मूलरूप में वे एक नीतिवान, आदर्शवादी, दयालु, न्यायकारी और कुशल महाराजा थे। बाकी समस्त गुण तो उनके पीछे-पीछे अनुसरण करते थे। वे मात्र धार्मिक नेता या महापुरुष नहीं थे, बल्कि धर्म तो उनके जीवन के एक-एक कार्यकलाप से स्वयं झलकता था। वैदिक धर्म से विभूषित आर्य पुरुष श्रीराम इतने कुशल राजा थे कि इनके राज्य को एक आदर्श राज्य माना गया है। भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन वेदमय था। कुछ वैदिक शब्द राम के जीवन में पूरी तरह से लागू होते हैं। उनमें से एक शब्द सामवेद मंत्र 185 में आया "मित्र' है। मित्र का अर्थ है, जिनका स्नेह प्रत्येक प्रकार से त्राण करने वाला होता है। ऐसे महापुरुष अपने सम्पर्क में आने वालों को बुराई से बचाते हैं और उनके सद्गुणों की प्रशंसा करते हैं। संकट आने पर इसके प्रत्युपकारों में प्राणपण से सहायता करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तो सब कुछ दे देते हैं। राम की इस प्रकार की मित्रता का उदाहरण सुग्रीव के साथ मिलता है। महात्मा राम सुग्रीव को कितना प्रेम करते थे तथा उसकी सुरक्षा का उनको कितना ध्यान रहता था, यह लंका में युद्ध की तैयारी के समय की एक छोटी सी घटना से स्पष्ट हो जाता है। समुद्र पार करके वानर सेना जब लंका में पहुंची तो राम सुग्रीव के साथ सुमेरु पर्वत पर खड़े कुछ निरीक्षण कर रहे थे कि पल भर में देखते ही देखते सुग्रीव पहाड़ से छलांग मारकर रावण के पास जा पहुँचा और कुछ जली-कटी सुनाकर रावण के साथ तीन-पांच कर रहा था तो आर्यपुत्र राम को बड़ी घबराहट हो रही थी तथा नाना प्रकार के विचार उनके मन को चिन्तित कर रहे थे। परन्तु ज्योें ही सुग्रीव वापस सुमेरु पर्वत पर राम के पास आया, तो राम ने कहा-
प्यारे सुग्रीव, मेरे साथ परामर्श किये बिना तुमने जो यह साहसिक कार्य किया, इस प्रकार का साहस राजा लोगों को करना उचित नहीं है।
हे वीर! अब बिना विचारे इस प्रकार के काम मत करना। यदि तुम्हें कुछ हो जाता (कुछ क्षति हो जाती) तो मुझे सीता को प्राप्त करने का फिर क्या प्रयोजन था।
हे महाबाहो! भरत-लक्ष्मण से और छोटे भाई शत्रुघ्न से और यहॉं तक कि अपने जीवन से फिर मुझे क्या मतलब रहता!
यदि किन्हीं कारणों से तुम वापस आने में असमर्थ होते, तो मैंने निश्चय कर लिया था कि युद्ध में रावण को परिवार और सेना सहित मारकर विभीषण का लंका में राजतिलक करके और अयोध्या का राज्य भरत को सौंपकर मैं अपना शरीर त्याग देता।
राम, अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की खोज मे दर-दर भटक रहे थे। तब वे हनुमान और सुग्रीव नामक दो वानरों से मिले। हनुमान, राम के सबसे बडे भक्त बने।
राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बडे पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था|और इनके तीन भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बडे भक्त माने जाते है। राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया|
हिन्दू धर्म के कई त्यौहार, जैसे दशहरा और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुडे हुए है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतीय संस्कृति के और आर्य समाज के आदर्श है । वाल्मीकि रामायण में श्रीराम का उज्ज्वल चरित्र वर्णित है।
राम और रामायण के अन्य पात्रों से शिक्षा ग्रहण करना बड़े सौभाग्य की बात है।
भगवान श्रीराम "रघुकुल' के एक महाराजा थे। आदिकालीन मनु के सात पुत्र थे जिनकी एक शाखा में भागीरथ, अंशुमान, दिलीप और रघु आदि हुए और दूसरी शाखा में सत्यवादी हरिश्चन्द्र आदि। वैवस्वत मनु के इसी वंश का नाम आगे चलकर सूर्यवंश हुआ, जिसमें श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया। श्रीराम एक आदर्श पुत्र, पति, सखा, भ्राता थे। वे वीर, धीर और सर्वमर्यादाओं से विभूषित थे। मूलरूप में वे एक नीतिवान, आदर्शवादी, दयालु, न्यायकारी और कुशल महाराजा थे। बाकी समस्त गुण तो उनके पीछे-पीछे अनुसरण करते थे। वे मात्र धार्मिक नेता या महापुरुष नहीं थे, बल्कि धर्म तो उनके जीवन के एक-एक कार्यकलाप से स्वयं झलकता था। वैदिक धर्म से विभूषित आर्य पुरुष श्रीराम इतने कुशल राजा थे कि इनके राज्य को एक आदर्श राज्य माना गया है। भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन वेदमय था। कुछ वैदिक शब्द राम के जीवन में पूरी तरह से लागू होते हैं। उनमें से एक शब्द सामवेद मंत्र 185 में आया "मित्र' है। मित्र का अर्थ है, जिनका स्नेह प्रत्येक प्रकार से त्राण करने वाला होता है। ऐसे महापुरुष अपने सम्पर्क में आने वालों को बुराई से बचाते हैं और उनके सद्गुणों की प्रशंसा करते हैं। संकट आने पर इसके प्रत्युपकारों में प्राणपण से सहायता करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तो सब कुछ दे देते हैं। राम की इस प्रकार की मित्रता का उदाहरण सुग्रीव के साथ मिलता है। महात्मा राम सुग्रीव को कितना प्रेम करते थे तथा उसकी सुरक्षा का उनको कितना ध्यान रहता था, यह लंका में युद्ध की तैयारी के समय की एक छोटी सी घटना से स्पष्ट हो जाता है। समुद्र पार करके वानर सेना जब लंका में पहुंची तो राम सुग्रीव के साथ सुमेरु पर्वत पर खड़े कुछ निरीक्षण कर रहे थे कि पल भर में देखते ही देखते सुग्रीव पहाड़ से छलांग मारकर रावण के पास जा पहुँचा और कुछ जली-कटी सुनाकर रावण के साथ तीन-पांच कर रहा था तो आर्यपुत्र राम को बड़ी घबराहट हो रही थी तथा नाना प्रकार के विचार उनके मन को चिन्तित कर रहे थे। परन्तु ज्योें ही सुग्रीव वापस सुमेरु पर्वत पर राम के पास आया, तो राम ने कहा-
प्यारे सुग्रीव, मेरे साथ परामर्श किये बिना तुमने जो यह साहसिक कार्य किया, इस प्रकार का साहस राजा लोगों को करना उचित नहीं है।
हे वीर! अब बिना विचारे इस प्रकार के काम मत करना। यदि तुम्हें कुछ हो जाता (कुछ क्षति हो जाती) तो मुझे सीता को प्राप्त करने का फिर क्या प्रयोजन था।
हे महाबाहो! भरत-लक्ष्मण से और छोटे भाई शत्रुघ्न से और यहॉं तक कि अपने जीवन से फिर मुझे क्या मतलब रहता!
यदि किन्हीं कारणों से तुम वापस आने में असमर्थ होते, तो मैंने निश्चय कर लिया था कि युद्ध में रावण को परिवार और सेना सहित मारकर विभीषण का लंका में राजतिलक करके और अयोध्या का राज्य भरत को सौंपकर मैं अपना शरीर त्याग देता।
राम के जीवन की प्रमुख घटनाएं
वनवास
राजा दशरथ के तीन रानियाँ थीं: कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। राम कौशल्या के पु्त्र थे, सुमित्रा के दो पु्त्र, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे और कैकेयी के पु्त्र भरत थे। कैकेयी चाहती थी उनके पु्त्र भरत राजा बनें, इसलिए उन्होने राजा दशरथ द्वरा राम को १४ वर्ष का वनवास दिलाया। राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। राम की पत्नी सीता, और उनके भाई लक्ष्मण भी वनवास गये थे।सीता का हरण
वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। रामायण के अनुसार, सीता और लक्ष्मण कुटिया में अकेले थे तब एक हिरण की वाणी सुनकर सीता परेशान हो गयी। वह हिरण रावण का मामा मारीच था| उसने रावण के कहने पर सुनहरे हिरण का रूप बनाया| सीता उसे देख कर मोहित हो गई और श्रीराम से उस हिरण का शिकार करने का अनुरोध किया| श्रीराम अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पडे और लक्ष्मण से सीता की रक्षा करने को कहा| मारीच श्रीराम को बहुत दूर ले गया| मौका मिलते ही श्रीराम ने तीर चलाया और हिरण बने मारीच का वध किया| मरते मरते मारीच ने ज़ोर से "हे सीता ! हे लक्ष्मण" की आवाज़ लगायी| उस आवाज़ को सुन सीता चिन्तित हो गयीं और उन्होंने लक्ष्मण को श्रीराम के पास जाने को कहा| लक्ष्मण जाना नहीं चाहते थे, पर अपनी भाभी की बात को इंकार न कर सके| लक्ष्मण ने जाने से पहले एक रेखा खीची, जो लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है।राम, अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की खोज मे दर-दर भटक रहे थे। तब वे हनुमान और सुग्रीव नामक दो वानरों से मिले। हनुमान, राम के सबसे बडे भक्त बने।
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