राजा दशरथ के स्वर्गवास से शोकाकुल भरत बोले- आज से भ्राता श्रीराम ही मेरे पिता हैं, लेकिन जब उन्हें माता कैकेयी के वचनों की बात का पता लगा तो वे आपा खो बैठे। उन्हें यह स्वीकार न था।वे अपनी माता को खरी-खोटी सुनाकर अपने प्रिय भाई को मनाने के लिए दल-बल के साथ चित्रकूट को चल दिए। उनके इस तरह आने का संदेश लक्ष्मण तक पहुँचा तो उन्हें भरत की नीयत पर शंका हुई, लेकिन राम ने उन्हें समझाया कि भरत पर शंका करना व्यर्थ है। उसके जैसा भाई तो भाग्य से ही मिलता है। इस बीच भरत वहाँ पहुँचे। उन्हें देखकर राम ने अपने दोनों हाथ फैला दिए।भरत भागकर उनसे लिपट गए और फूट-फूट कर रोने लगे।
राम-भरत मिलाप देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखों से आँसू फूट पड़े। भरत के आग्रह पर भी जब श्रीराम अध्योया वापसी को तैयार नहीं हुए तो वे उनकी चरण-पादुकाएँ लेकर अयोध्या लौट आए। इसके बाद वे नंदीग्राम में एक वनवासी का जीवन बिताते हुए उन चौदह वर्षों के बीतने की प्रतीक्षा करने लगे, जब उनके भाई वापस आकर राजकाज संभाल लें।दोस्तो, भाई हो तो ऐसा। हम सभी की भी यही चाह होती है कि हमें भाई मिले तो भरत जैसा, लेकिन जैसा कि राम ने लक्ष्मण को समझाया था कि ऐसे भाई बड़े भाग्य से ही मिलते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें भाई तो भरत जैसा चाहिए, लेकिन हम राम जैसे नहीं बनना चाहते। अब जब आप राम जैसे नहीं बन सकते तो उनके जैसे भाग्य भी कहाँ हो सकते हैं कि आपको भी कोई भरत मिले। इसलिए भरत की चाह है तो राम बनो। दूसरी ओर यदि आपको राम जैसा भाई चाहिए तो भरत बनो जिन्होंने अपने भाई के लिए अपनी माँ की भी नहीं सुनी और राजपाट त्याग दिया। इसी के कारण वे एक आदर्श भाई के रूप में स्थापित हुए।वैसे हम आसपास दृष्टि दौड़ाएँ तो हमें राम-भरत जैसे भाइयों की कई जोड़ियाँ मिल जाएँगी। संयुक्त परिवार तो टिके भी ऐसी ही जोड़ियों की वजह से हैं। तभी उनके यहाँ सुख है, क्योंकि वे छोटे-मोटे लाभ के लिए बड़ी-बड़ी खुशियों को दाँव पर नहीं लगाते। वे जानते हैं कि एक साथ रहने में, एक रहने में जितने लाभ हैं, उतनी हानियाँ नहीं। कहते हैं कि संयुक्त परिवार में भगवान का वास होता है।आखिर क्यों न होगा वास, क्योंकि वहाँ आपसी प्रेम जो होता है और प्रेम भी तो भगवान का ही रूप है न। और फिर जहाँ भगवान है, वहाँ सुख, शांति, शक्ति, संपत्ति सभी कुछ तो होंगे ही। इसके विपरीत जहाँ भाइयों के दिल नहीं मिलते, वे छोटी-छोटी बातों के लिए बड़े-बड़े सुख दाँव पर लगा देते हैं। वहाँ सारी स्थितियाँ उलटी होती हैं। वहाँ दुःख, अशांति, विपत्ति का वास होता है।
राम-भरत मिलाप देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखों से आँसू फूट पड़े। भरत के आग्रह पर भी जब श्रीराम अध्योया वापसी को तैयार नहीं हुए तो वे उनकी चरण-पादुकाएँ लेकर अयोध्या लौट आए। इसके बाद वे नंदीग्राम में एक वनवासी का जीवन बिताते हुए उन चौदह वर्षों के बीतने की प्रतीक्षा करने लगे, जब उनके भाई वापस आकर राजकाज संभाल लें।दोस्तो, भाई हो तो ऐसा। हम सभी की भी यही चाह होती है कि हमें भाई मिले तो भरत जैसा, लेकिन जैसा कि राम ने लक्ष्मण को समझाया था कि ऐसे भाई बड़े भाग्य से ही मिलते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें भाई तो भरत जैसा चाहिए, लेकिन हम राम जैसे नहीं बनना चाहते। अब जब आप राम जैसे नहीं बन सकते तो उनके जैसे भाग्य भी कहाँ हो सकते हैं कि आपको भी कोई भरत मिले। इसलिए भरत की चाह है तो राम बनो। दूसरी ओर यदि आपको राम जैसा भाई चाहिए तो भरत बनो जिन्होंने अपने भाई के लिए अपनी माँ की भी नहीं सुनी और राजपाट त्याग दिया। इसी के कारण वे एक आदर्श भाई के रूप में स्थापित हुए।वैसे हम आसपास दृष्टि दौड़ाएँ तो हमें राम-भरत जैसे भाइयों की कई जोड़ियाँ मिल जाएँगी। संयुक्त परिवार तो टिके भी ऐसी ही जोड़ियों की वजह से हैं। तभी उनके यहाँ सुख है, क्योंकि वे छोटे-मोटे लाभ के लिए बड़ी-बड़ी खुशियों को दाँव पर नहीं लगाते। वे जानते हैं कि एक साथ रहने में, एक रहने में जितने लाभ हैं, उतनी हानियाँ नहीं। कहते हैं कि संयुक्त परिवार में भगवान का वास होता है।आखिर क्यों न होगा वास, क्योंकि वहाँ आपसी प्रेम जो होता है और प्रेम भी तो भगवान का ही रूप है न। और फिर जहाँ भगवान है, वहाँ सुख, शांति, शक्ति, संपत्ति सभी कुछ तो होंगे ही। इसके विपरीत जहाँ भाइयों के दिल नहीं मिलते, वे छोटी-छोटी बातों के लिए बड़े-बड़े सुख दाँव पर लगा देते हैं। वहाँ सारी स्थितियाँ उलटी होती हैं। वहाँ दुःख, अशांति, विपत्ति का वास होता है।
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